बसपा में अब 'आनंद-युग' की शुरुआत, जरूरी मीटिंग में मायावती ने दिया भतीजे को आशीर्वाद
बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार अपने भतीजे आनंद कुमार को जिस तरह प्रमोट कर रहीं हैं उससे ये लगने लगा है कि जल्द ही बसपा में अब आनंद युग आने वाला है।

पॉलिटिकल डेस्क( UP News). सूबे की सत्ता में दो बार काबिज रह चुकी बसपा में अब नए युग की शुरुआत के असार दिखाई देने लगे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार अपने भतीजे आनंद कुमार को जिस तरह प्रमोट कर रहीं हैं उससे ये लगने लगा है कि जल्द ही बसपा में अब आनंद युग आने वाला है। बुधवार को लखनऊ में पार्टी के नेताओं की एक आवश्यक बैठक में भी मायावती के भतीजे आनंद कुमार मौजूद रहे। मायावती ने भतीजे को कंधे पर हाथ रख कर आशीर्वाद भी दिया। 

बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक शुरू कर दी है। बैठक में पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों, जिला अध्यक्षों और अन्य जिम्मेदार लोगों को बुलाया गया है। बैठक में मायावती ने भतीजे आकाश आनंद भी नजर आए। मायावती ने उनके कंधे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बसपा सुप्रीमो द्वारा बीते दिनों कुछ अहम दिशा-निर्देश दिए गए थे। बैठक में इन दिशा-निर्देशों पर अमल की समीक्षा करेंगी। साथ ही, बदलते राजनीतिक हालात के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो द्वारा कुछ दिशा-निर्देश भी दिए जाएंगे।

2007 में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बसपा के पास सिर्फ एक विधायक 

38 साल पहले 1984 में बनी बसपा, 2022 के चुनाव में आते-आते अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है ऐसा लगता है। जिस बसपा ने 2007 में उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, वही बसपा 10 साल में सिमटकर एक विधायक पर आ गई है। 2022 के चुनाव में सिर्फ एक विधायक रसड़ा सीट से उमाशंकर सिंह ने ही जीत हासिल की है, बसपा के बाकी सभी प्रत्याशी चुनाव हार चुके हैं।  2017 के चुनाव में बसपा के 19 विधायक थे, लेकिन 2022 आते-आते बसपा में 3 विधायक बचे थे। 

सोशल इंजीनियरिंग के सहारे मिला था सत्ता का सुख 

पार्टी सुप्रीमो मायावती के कभी खास सिपहसालार रहे राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता उन्हें छोड़कर चले गए। बसपा जिस सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता का सुख भोग चुकी है वह सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला 2012 के बाद ऐसा पटरी से उतरा कि आज बसपा का अपना मूल वोटर तक जा चुका है। 

2012 में सत्ता जाने के साथ ही चला गया जनाधार 

दलितों में राजनैतिक चेतना जगाने के नाम पर कांशीराम ने जिस बहुजन समाज पार्टी नाम की जिस इमारत की नींव रखी थी वह शिखर तक भी गई। दो बार सत्ता में भी आई लेकिन 2012 में सत्ता क्या गई पार्टी 10 साल बाद 2022 में एक विधायक के आंकड़े पर सिमट गई। चुनाव दर चुनाव बसपा का गिरता ग्राफ 2022 के चुनाव में बिल्कुल खात्मे पर आ गया। अगर आंकड़ों में समझें, तो 1990 के बाद से बसपा ने अपने वोट बैंक में धीरे-धीरे इजाफा किया। 1993 से बसपा ने विधान सभा चुनावों में 65 से 70 सीटों पर जीतना शुरू किया। 2002 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली बसपा का वोट प्रतिशत 23 फीसदी पार कर गया। 2007 में बसपा को सबसे ज्यादा 40.43 फीसदी वोट मिले और उसने अपने दम पर सरकार भी बनाई। फिर 2022 के चुनाव में पार्टी सिर्फ एक विधायक को जिताने में कामयाब हो पाई।  

 

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